निराश मन की व्यथा
आज दिनांक १९.११.२३ को प्रदत्त स्वैच्छिक विषय पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति
शीर्षक: निराश मन की व्यथा
निराश मन की व्यथा :
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न जाने कितने सपने मानस के पंछी बन उड़ जाते हैं,
धुआं धुआं हो जाते अरमां,मानव तृषित रह जाते हैं।
हर इन्सां जीवन मे अपने सपनो का महल बनाता है,
मधुर कल्पनाओं से उसको सुन्दर ख़ूब सजाता है।
कोई तो होता उसके दिल मे भावों को कोमलता देता,
अपरिमेय रंगीन बना कर,उसमे जीवन भर देता।
अगर कभी धुआं बन सपने छिन्न-भिन्न हो जाते हैं,
टूटे दिल के इन्सां को गुज़रे दिन याद दिलाते हैं।
विरह -वेदना व्यथित व्यक्ति वह शोकगीत तब गाता है,
सपने होंगे कभी तो पूरे,ख़ुद को ढ़ारस देता है ।
कभी कभी संयत हो पाता,कभी असंयत रहता है,
अवसाद ग्रस्त जीवन जीता है,मृत समान हो रहता है।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Gunjan Kamal
20-Nov-2023 05:24 PM
👏🏻👌
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
20-Nov-2023 07:59 AM
खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति
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Reena yadav
19-Nov-2023 03:38 PM
👍👍
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